जामुन के साथ वाले
पास के आम के पेड़ पर
एक सुनहरी सी गौरैया
अपने पंखों को फैलाकर
गर्दन को ऊपर निचे करते हुए
बरामदे के खुले आँगन को देखते हुए
गुमसुम बैठी सोच रही थी
वहां बरामदे के ऊपर वाले हिस्से में
जहाँ एक रोशनदान बना है
उसी रौशनदान से सटकर
सुन्दर सा एक घोंसला बनाऊं
नन्हे मुन्हे दो बच्चों से
छोटा सा संसार बनाऊं
जैसे घर का मालिक हर दिन
नन्ही सी अपनी गुड़िया को
सुन्दर गीत सुनाता हरदिन
मै भी अपने नन्हे मुन्हों को
सूरज के डूब जाने पर
वीरों और बहादुरों वाला
गीत नया हररोज़ सुनाऊँ
एक दिन जब बड़े हो जायेंगे बच्चे
हो जायेंगे सारे सपने जब सच्चे
बच्चे जब सीख जाएंगे उड़ना
मै भी फिर उड़ जाऊं
दूर किसी जंगल में जाकर
फिर नयी दुनिया बसाऊं
- आर धिरज