Friday, June 12, 2020

फिर नयी दुनिया बसाऊं


जामुन के साथ वाले
पास के आम के पेड़ पर
एक सुनहरी सी गौरैया
अपने पंखों को फैलाकर
गर्दन को ऊपर निचे करते हुए
बरामदे के खुले आँगन को देखते हुए
गुमसुम बैठी सोच रही थी
वहां बरामदे के ऊपर वाले हिस्से में
जहाँ एक रोशनदान बना है
उसी रौशनदान से सटकर
सुन्दर सा एक घोंसला बनाऊं
नन्हे मुन्हे दो बच्चों से 
छोटा सा संसार बनाऊं

जैसे घर का मालिक हर दिन
नन्ही सी अपनी गुड़िया को
सुन्दर गीत सुनाता हरदिन
मै भी अपने नन्हे मुन्हों को
सूरज के डूब जाने पर
वीरों और बहादुरों वाला
गीत नया हररोज़ सुनाऊँ

एक दिन जब बड़े हो जायेंगे बच्चे
हो जायेंगे सारे सपने जब सच्चे
बच्चे जब सीख जाएंगे उड़ना
मै भी फिर उड़ जाऊं
दूर किसी जंगल में जाकर
फिर नयी दुनिया बसाऊं 

                              - आर धिरज 

कोशिश तो बहुत की मगर...



कोशिश तो बहुत की मगर, 
ना मिला निशां तेरा ना साया कोई
हवाओं से भी पूछा, 
फ़ज़ाओं से भी मन्नतें की
दुनिया की सैर करने वाले 
चाँद और सूरज से भी इबादतें की
मगर तेरे आने की खबड़, 
सपनों में भी ना लाया कोई।

कोशिश तो बहुत की मगर...

हर पल लिया तेरा नाम, 
दिनरात भरी आहें
दूर तक पगडंडियों पर 
बस टिकी रहीं निगाहें
दौर पड़ी मै बदहवास, बेअदब
जब भी तेरा हमसाया 
खेतों में लहराया कोई।

कोशिश तो बहुत की मगर, 
ना मिला निशां तेरा ना साया कोई।

                                       
                                                         -आर. धिरज

Wednesday, April 1, 2015

तुम अपनी मुहिम मत बंद करना

तुम अपनी मुहिम मत बंद करना, 
तुम अपना विद्रोह मत रोकना
अन्याय के ख़िलाफ, मानवता के लिये 
तुम आवाज़ उठाते रहना l

वो सुन रहा है तुम्हे , वो देख रहा है तुम्हे, 
पर मज़बूर है वो अपनी हालात के हांथो अभी.
अभी तुम अकेले हो मगर, वो दिन दूर नहीं 
जब ये सब तुम्हारे साथ हुंकार भरेंगे l

तुम रुकना नहीं, तुम थकना नहीं,
तुम ऐसा मत सोचना कि प्रयाश तुम्हारा निरर्थक है;
तुम्हारी आवाज़ पहुच रही है सभी सामंतो सभी ठेकेदारों तक,
बहुत शर्मसार हैं उनके चेहरे तुम्हारे तथ्यों को देख कर l

तुम अपनी मुहिम मत बंद करना, 
तुम अपना विद्रोह मत रोकना
अन्याय के ख़िलाफ, मानवता के लिये 
तुम आवाज़ उठाते रहना l
                                                                               
                                                                                        - आर धीरज

तुम शामिल हो

-: तुम शामिल हो :-
मेरी रगों में मेरी नसों में

मेरी आरज़ू मेरी मन्नतों में
मेरी सुबह मेरी शाम में

मेरी ज़िन्दगी की धुप-छाँव में
मेरी हार में मेरी जीत में

मेरी साज़ में संगीत में
बारिश की छम-छम आवाज़ में

टीम-टिमाती चांदनी की नाज़ में
महकती सर्द रातों की तन्हाई में

खिलखिलाती खुशियों की गहराई में
मेरी हर आग़ाज़ में अंजाम में

मेरे हर नाम में इनाम में
तुम शामिल हो।
- /राणा

गाँव की याद


गाँव की याद / राणा धिरज 

बड़ी बैचैनी थी बड़ी अकुलाहट थी
जब गाँव में था, बड़ी कुलबुलाहट थी।

गाँव की हमने जद्दोज़हद छोड़कर
आ बसे हैं शहर, दिलों को तोड़कर।

सब कुछ देता शहर ना  देता शुकूं
माँ आँचल सुलाती थी जब मै थकूं।

साल दो साल में जब भी जा पाता हूँ गाँव
कई बुजुर्गों के नहीं मिलते मुझे छूने को पाँव।

आज फिर गाँव से एक पैगाम आया है
"जोगी" बाबा के गुजरने का टेलीग्राम आया है।

बड़ी बेचैनी है बड़ी अकुलाहट है
आज फिर दिल में बड़ी कुलबुलाहट है। 

Saturday, September 10, 2011

ये कौन सा दयार है



ये कौन सा मोड़ न जाने ये कौन सा दयार है,
राह बदलना भी है मुश्किल, साथ चलना भी दुशवार है I
  
                                                         - आर धिरज

Monday, September 5, 2011

मेरी ज़िन्दगी मुझसे ये बर्ताव न कर

Friends!
Everyone has their own perspective, their own take on life. All of our lives we always seem to direct our energy toward attempting to know or conclude our life path. But irrespective of sense of contentment or hunger, all of us in life has an interesting story to share.
Rana Brajesh, my elder brother, a Civil engineer by profession, is very passionate about Writing. After several days of persuasion, he has finally allowed me to share his recent work (Meri zindagi mujhase ye bartao na kar) here...

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मेरी ज़िन्दगी मुझसे ये बर्ताव न कर
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तू मेरी ज़िन्दगी मुझसे ये बर्ताव न कर,
मेरे पहलु में चली आ दिल में घाव न कर I

मेरी अर्जी को तू शायद ख़ारिज़ कर दे,
मेरा बेढंग रवैया तुझे आजिज़ करदे ;
तुझे तेरे हिस्से का मौका दूंगा,
बाकि तू पछताव न कर I
तू मेरी ज़िन्दगी मुझसे ये बर्ताव न कर I

तेरे जलवों की झलक देखा ही नहीं,
तेरी अंगराई कसक देखा ही नहीं ;
तू बस साथ निभा,
चल अभी पड़ाव न कर I
तू मेरी ज़िन्दगी मुझसे ये बर्ताव न कर I

बड़े बेतरतीव लिबाशों का ज़माना है ये,
पल दो पल का ही सही मेरा ठिकाना है ये ;
मेरे सादे से कपड़ों में कोई रंग भर दे,
अब ज्यादा मनमुटाव न कर I
तू मेरी ज़िन्दगी मुझसे ये बर्ताव न कर I

अपने नज़दीक ही रहने दे मुझे दूर न कर,
मै चला जाऊं मुह मोड़ के मज़बूर न कर ;
मेरे होने ही से तुझमें ये सुगंध भी है,
जाने जां भटकाव न कर I
तू मेरी ज़िन्दगी मुझसे ये बर्ताव न कर I

- राणा ब्रजेश

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